लोग कहते हैं,
कि बारह साल बाद तो
घूरे के दिन भी बदलते हैं।
पर आज़ादी के साठ साल बाद भी
क़ानून की दशा नहीं सुधरी,
एक दिन प्रियदर्शनी मट्टू
और जेसिका लाल के हत्यारे
बारी-बारी हो गए बरी।
अंधे क़ानून के संकेत साफ थे
बड़े बाप के बेटों के
सौ खून भी माफ़ थे।
तब मीडिया आया आगे
और बोल-बहुत हो गया अब,
कानून को दिखे न दिखे
मुझे दिखता है सब।
फिर क्या था
रिपोर्टर, बाहुबलियों के
यूं हाथ धोकर के पीछे पड़े,
जैसे शोले फिल्म में
जय और वीरू
गब्बर के पीछे पड़े।
जब तक अदालत ने
एक हत्यारे को फांसी,
और दूसरे को उम्र कैद का
आदेश न दे दिया,
तब तक चैन से नहीं बैठा मीडिया।
फिर तो एक के बाद एक
सुखद जजमेंट आते रहे
जेठमलानी टाइप
वकालत के गाल पर
ऐसा थप्पड़ पड़ा
कि देर तक सहलाते रहे।
अब तो कोई बेटा
बदमाशी करता है
तो बाहुबली कहता है
बेटा बहुत पछताएगा
सुधर जा वरना
तेरा बाप मीडिया आ जाएगा।
कि बारह साल बाद तो
घूरे के दिन भी बदलते हैं।
पर आज़ादी के साठ साल बाद भी
क़ानून की दशा नहीं सुधरी,
एक दिन प्रियदर्शनी मट्टू
और जेसिका लाल के हत्यारे
बारी-बारी हो गए बरी।
अंधे क़ानून के संकेत साफ थे
बड़े बाप के बेटों के
सौ खून भी माफ़ थे।
तब मीडिया आया आगे
और बोल-बहुत हो गया अब,
कानून को दिखे न दिखे
मुझे दिखता है सब।
फिर क्या था
रिपोर्टर, बाहुबलियों के
यूं हाथ धोकर के पीछे पड़े,
जैसे शोले फिल्म में
जय और वीरू
गब्बर के पीछे पड़े।
जब तक अदालत ने
एक हत्यारे को फांसी,
और दूसरे को उम्र कैद का
आदेश न दे दिया,
तब तक चैन से नहीं बैठा मीडिया।
फिर तो एक के बाद एक
सुखद जजमेंट आते रहे
जेठमलानी टाइप
वकालत के गाल पर
ऐसा थप्पड़ पड़ा
कि देर तक सहलाते रहे।
अब तो कोई बेटा
बदमाशी करता है
तो बाहुबली कहता है
बेटा बहुत पछताएगा
सुधर जा वरना
तेरा बाप मीडिया आ जाएगा।
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