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Friday, January 4, 2013

Media, Part - 2 (Dhai Aakhar Hasya Ke)

शहर  के बीच
हाई-वे का सीन था
सीन प्रात:कालीन था
रिपोर्टर मुस्कुराया
और गर्व से बताया
" ये है एशिया का सबसे बड़ा
ओपन एयर शौचालय
और मैं हूँ अजय
आप देख रहे हैं
हमारा विशेष कार्यक्रम
हाई-वे के हम दम
हाथ में लोटा-डिब्बा लिए
लोग आ रहे हैं
जा रहे हैं
और वापस जा रहे हैं
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
वैसे तो हर जगह लड़ाई
हाई-वे पर भाई-भाई।"

इसके बाद रिपोर्टर ने
अपना रुख दूसरी तरफ किया
और एक हाई-वे के
हम दम का इंटरव्यू लिया
" आप यहां क्या कर रहे हैं?"
" जी मैं यहां क्या कर रहा हूं,
ये तो आप देख ही रहे हैं
पर आप यहां क्या कर रहे हैं?"
रिपोर्टर बोला -
" हम लाइव टेलीकास्ट कर रहे हैं
हमारा विशेष कार्यक्रम
हाई-वे के हमदम
इसमें आपका स्वागत है।"
हमदम बोला -
" हम तो यहां रोज आते हैं
आज आपका स्वागत है।
लेकिन ये तो कहो
आज फैशन शो की जगह, हमारा शो?
मजे से फिल्माओ, क्या लोकेशन है
हम धरती पुत्र -
और ये धरती पुत्रों का प्रात:कालीन
खुला अधिवेशन है।

रिपोर्टर ने पूछा -
" क्या आपको नहीं लगता कि आप
सरकारी नियम का उलंघन कर रहे हैं?"
" जी हम तो कुदरत के नियम का
पालन कर रहे हैं"
अब कुदरत के नियम का पालन करने से
सरकारी नियम टूटते हैं
तो हम क्या कर सकते हैं?"

रिपोर्टर ने इंटरव्यू आगे बढ़ाया
" ये हाई-वे कब से है?"
" जी दस साल से।"
" यहां आपका अधिवेशन
कब से चल रहा है?"
" जी महाभारत काल से,
पहले यहां एक गांव था
एक दिन शहर आ पहुंचा टहलता हुआ
और गांव का अपहरण कर लिया
हमने भी आधुनिकता के सामने
समर्पण कर दिया
नतीजा सामने है, देख लिया?
शहर ने हमारा
और हमने शहर का
हुलिया बिगाड़ के रख दिया।"

तभी न्यूज रीडर ने सवाल किया
" अजय ! ख़राब मौसम या बरसात के दिन
बाधा  पहुंचाते हैं
क्या तब भी ये लोग रोज आते हैं?
बोला अजय - " बरसात हो या प्रलय
रोज आना पड़ता है
आदमी खाए बिना रह सकता है
नहाए बिना रह सकता है
लेकिन आये बिना -
एक दिन से अधिक नहीं रह सकता संजय,"
संजय बोला -
" इस जानकारी के लिए
शुक्रिया अजय।"

अंतिम सवाल किया रिपोर्टर ने-
" क्या कारण है कि शहर में
आप न शरमाते हैं, न लजाते हैं
इस तरह खुले में बैठ जाते हैं
जबकि गांव में-आज भी
लोक लाज निभाते हैं?"
हम दम बोला-
"गांव में एक दुसरे को जानते हैं
इसलिए करते हैं लाज
यहां जान पहचान ही नहीं
तो काहे की लाज
और किसका लिहाज़
गांव में संस्कार था
शहर में रोजगार था
रोजगार के लिए गांव छूटा
तो आंखों की शर्म रही जाती,
वहां पगड़ी उतारने में
आती थी शर्म
यहां कपड़े  उतारने में नहीं आती।"

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