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Thursday, November 7, 2013

Happy Diwali !!!

Dear All,

Wish you a very Happy Diwali.. May this year be full of lights and glitter.

Keep smiling and I love you all...

Regards,

Atal Kavi

Saturday, January 12, 2013

Dhai Aakhar Hasya Ke

Media, Part - 5 (Dhai Aakhar Hasya Ke)

लोग कहते हैं,
कि बारह साल बाद तो
घूरे के दिन भी बदलते हैं।
पर आज़ादी के साठ साल बाद भी
क़ानून की दशा नहीं सुधरी,
एक दिन प्रियदर्शनी मट्टू
और जेसिका लाल के हत्यारे
बारी-बारी हो गए बरी।
अंधे क़ानून के संकेत साफ थे
बड़े बाप के बेटों के
सौ खून भी माफ़ थे।

तब मीडिया आया आगे
और बोल-बहुत हो गया अब,
कानून को दिखे न दिखे
मुझे दिखता है सब।
फिर क्या था
रिपोर्टर, बाहुबलियों के
यूं हाथ धोकर के पीछे पड़े,
जैसे शोले फिल्म में
जय और वीरू
गब्बर के पीछे पड़े।
जब तक अदालत ने
एक हत्यारे को फांसी,
और दूसरे को उम्र कैद का
आदेश न दे दिया,
तब तक चैन से नहीं बैठा मीडिया।

फिर तो एक के बाद एक
सुखद जजमेंट आते रहे
जेठमलानी टाइप
वकालत के गाल पर
ऐसा थप्पड़ पड़ा
कि  देर तक सहलाते रहे।
अब तो कोई बेटा
बदमाशी करता है
तो बाहुबली कहता है
बेटा  बहुत पछताएगा
सुधर जा वरना
तेरा बाप मीडिया आ जाएगा।

Media, Part - 4 (Dhai Aakhar Hasya Ke)

रिपोर्टर टी. वी. पर आया
और विधान सभा का
आंखों देखा हाल सुनाया,
आज विधान सभा में जमकर
सदस्यों ने एक दूसरे पर
जूते बरसाए
किसी के हिस्से में आए
किसी के हिस्से में नहीं आए।
जिनके हिस्से में आए
उन्होंने खाए
जिनके हिस्से में नहीं आए
उन्होंने नारे लगाए।
इस बीच किसी का निशाना
दे गया दगा
एक जूता अध्यक्ष महोदय
को जा लगा
मच गई हड़बड़ी
कार्रवाई रोकनी पड़ी।
सरकार ने तत्काल
जांच का आदेश दिया
अध्यक्ष महोदय ने
अभी तक जूता वापस नहीं किया
लखनऊ से मैं, दीपक सौरसिया।

Media, Part - 3 (Dhai Aakhar Hasya Ke)

दूरदर्शन ने
अपने विशेष कार्यक्रम के अंतर्गत,
फ़सल को नुकसान -
पहुंचाने वाले कीड़ों की बाबत
वो दुर्लभ जानकारी दी,
जो किसान भाइयों को
पहले से ही थी।
आह ! दूरदर्शन
तू बिलकुल नहीं बदला
जो देखे, उसका भी भला,
जो नहीं देखे उसका भी भला।

Monday, January 7, 2013

Back as Dialogue writer for Sooraj R Barjatya's next film

Dear Friends,

After a break of 6 years, I am back to dialogue writing and shall be penning the dialogues for Sooraj R Barjatya's next venture which shall star Salman Khan in the lead.

Shall keep you updated on the project.

Lots of Love and with Thanks,

Yours always,

Atal Kavi

Friday, January 4, 2013

Media, Part - 2 (Dhai Aakhar Hasya Ke)

शहर  के बीच
हाई-वे का सीन था
सीन प्रात:कालीन था
रिपोर्टर मुस्कुराया
और गर्व से बताया
" ये है एशिया का सबसे बड़ा
ओपन एयर शौचालय
और मैं हूँ अजय
आप देख रहे हैं
हमारा विशेष कार्यक्रम
हाई-वे के हम दम
हाथ में लोटा-डिब्बा लिए
लोग आ रहे हैं
जा रहे हैं
और वापस जा रहे हैं
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
वैसे तो हर जगह लड़ाई
हाई-वे पर भाई-भाई।"

इसके बाद रिपोर्टर ने
अपना रुख दूसरी तरफ किया
और एक हाई-वे के
हम दम का इंटरव्यू लिया
" आप यहां क्या कर रहे हैं?"
" जी मैं यहां क्या कर रहा हूं,
ये तो आप देख ही रहे हैं
पर आप यहां क्या कर रहे हैं?"
रिपोर्टर बोला -
" हम लाइव टेलीकास्ट कर रहे हैं
हमारा विशेष कार्यक्रम
हाई-वे के हमदम
इसमें आपका स्वागत है।"
हमदम बोला -
" हम तो यहां रोज आते हैं
आज आपका स्वागत है।
लेकिन ये तो कहो
आज फैशन शो की जगह, हमारा शो?
मजे से फिल्माओ, क्या लोकेशन है
हम धरती पुत्र -
और ये धरती पुत्रों का प्रात:कालीन
खुला अधिवेशन है।

रिपोर्टर ने पूछा -
" क्या आपको नहीं लगता कि आप
सरकारी नियम का उलंघन कर रहे हैं?"
" जी हम तो कुदरत के नियम का
पालन कर रहे हैं"
अब कुदरत के नियम का पालन करने से
सरकारी नियम टूटते हैं
तो हम क्या कर सकते हैं?"

रिपोर्टर ने इंटरव्यू आगे बढ़ाया
" ये हाई-वे कब से है?"
" जी दस साल से।"
" यहां आपका अधिवेशन
कब से चल रहा है?"
" जी महाभारत काल से,
पहले यहां एक गांव था
एक दिन शहर आ पहुंचा टहलता हुआ
और गांव का अपहरण कर लिया
हमने भी आधुनिकता के सामने
समर्पण कर दिया
नतीजा सामने है, देख लिया?
शहर ने हमारा
और हमने शहर का
हुलिया बिगाड़ के रख दिया।"

तभी न्यूज रीडर ने सवाल किया
" अजय ! ख़राब मौसम या बरसात के दिन
बाधा  पहुंचाते हैं
क्या तब भी ये लोग रोज आते हैं?
बोला अजय - " बरसात हो या प्रलय
रोज आना पड़ता है
आदमी खाए बिना रह सकता है
नहाए बिना रह सकता है
लेकिन आये बिना -
एक दिन से अधिक नहीं रह सकता संजय,"
संजय बोला -
" इस जानकारी के लिए
शुक्रिया अजय।"

अंतिम सवाल किया रिपोर्टर ने-
" क्या कारण है कि शहर में
आप न शरमाते हैं, न लजाते हैं
इस तरह खुले में बैठ जाते हैं
जबकि गांव में-आज भी
लोक लाज निभाते हैं?"
हम दम बोला-
"गांव में एक दुसरे को जानते हैं
इसलिए करते हैं लाज
यहां जान पहचान ही नहीं
तो काहे की लाज
और किसका लिहाज़
गांव में संस्कार था
शहर में रोजगार था
रोजगार के लिए गांव छूटा
तो आंखों की शर्म रही जाती,
वहां पगड़ी उतारने में
आती थी शर्म
यहां कपड़े  उतारने में नहीं आती।"